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योग दिवस के उपलक्ष्य में

सुबह उठना चाहिए | जीवन के जितने भी कष्ट है सुबह उठने से ठीक होते है | आपकी कमर में दर्द है सुबह पांच बजे उठो , पैर में दर्द है सुबह पांच बजे उठो ,घर में पानी नहीं है सुबह पांच बजे उठो ,किसी काम में दिल नहीं लगता सुबह पांच बजे उठो, आपका साबुन स्लो है सुबह पांच बजे उठो, देश की जीडीपी कम  है सुबह पांच बजे उठो, मंत्री जी काम नहीं करते सुबह पांच बजे उठो, टीवी पे कुछ नहीं आता तो आग लगा दो टीवी को पर उठो तो पांच बजे ही | पर उठके करना क्या है इसका उल्लेख पुराणों में भी कम ही है | आमतौर पे पुरानी फटी किताबों में भी सुबह उठके व्यायाम का उल्लेख तो है पर व्हाट्सप्प के बारे में किसी ने लिखा ही नहीं | इससे युवा गंभीर रूप से कंफ्यूज है कि सुबह उठ के व्यायाम ही करना होता तो "भगवान" ने व्हाट्सप्प बनाया ही क्यों होता? एक नया आया है " योग " | कहते है " योगा से होगा " पर हमारे इस निरीह प्राणी से " योगा कैसे होगा " ये तो कोई  बताता ही नहीं | योग महत्वपूर्ण विषय है और हमको योग करना चाहिए खासकर योग दिवस वाले दिन, अरे भाई क्योंकि इस दिन फोटू खिंचता है | और मुर्ख है वो ल

प्यारे पेट्रोल की गगनचुम्बी उड़ान

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वैसे तो हमारा प्यारा पेट्रोल हमेशा से ही Elite रहा है उसको कभी कमतर नहीं आँका गया, उसमें हमेशा से ही Aristocracy वाली बात रही है। और अमीरों की तरह वो भी अति निम्न गरीबों को मारने (जलाकर) के काम तो आ सकता है, परन्तु उनके भले में काम आने वाली तुच्छ कीमत उसने अपनी कभी नहीं रखी।  वो हमेशा से खुद को "इम्पोर्टेड आइटम" वाले रेंज से निचे लाया ही नहीं।  हमने भी देश की गरीबी या पैसे की तंगी की वजह से कभी पेट्रोल को निम्न स्तर पर लाने की गुस्ताखी नहीं की, वो कहीं रूठ न जाये इसीलिए उसके (मूढ़) अभिवावक भी उसको सस्ते में खरीद कर ऊँची कीमत पर बेचते रहे हैं। अरे भाई  देखना, कहीं उसका दिल न टूट जाये इसमें अगर कुछ निष्ठुर या निर्दयी मनुष्यों को हृदयघात आ भी जाये तो कोई घाटा नहीं है। हाल ही के दिनों में पेट्रोल ने नयी ऊंचाइयों को छुआ है, पर ये उसका भाग्यदोष ही समझें की इस उन्नति पर भी कुछ लोग नाक भौं सिकोड़ रहे है।  ये वही लोग है जो शेयर मार्किट उछाल मारता है तो मदमस्त हो उठते है, तो भाई पेट्रोल ने क्या बिगाड़ा है ?  उसको भी उन्नति करने का पूरा हक़ मिलना ही चाहिए वो बेचारा सौ क्या हुआ लोग आठ-आठ क्य

सर्पागमन

डिस्क्लेमर :- निम्नलिखित  लेख सिर्फ विनोद के लिए है हमने बहुत ही अच्छे पडोसी पाए है इसको पढ़कर  कोई पूर्वाग्रह न बनाये  हाल ही में लेखक के घर एक सांप का आगमन हुआ। किसी भी ठीक ठाक ब्रह्मांड में ये बात थोड़ी सी चिंता की थी जिसको थोड़ी सी सावधानी रखते हुए आसानी से दूर किया जा सकता था। जैसे खुद भागकर या किसी सांप पकड़ने वाले को बुलाकर या वन विभाग के कर्मचारियों से संपर्क करके इस समस्या को निपटाया जा   सकता था।  लेखक को भी यही लगा था अतः उसने कुछ अधिकारीयों से संपर्क किया और उधर से भी त्वरित कार्यवाही की बात कही गयी।  कुल मिलाकर सब सही  चल रहा था। परन्तु लेखक का समय बहुत अच्छा चल रहा था , इसीलिए देवयोग से किसी प्यारे पडोसी को पता लग गया कि लेखक के घर सांप निकला है फिर क्या था ये खबर जंगल की आग की तरह फ़ैल गयी कि " लेखक के घर सांप निकला है " इसी बात को ध्यान में रखते हुए आसपास के सारे "सांपनाथ और नागनाथ " निकल पड़े लेखक के घर की ओर।  जल्दी ही बड़े बड़े दावे सुनाई देने लगे जैसे "भाईसाहब कहें तो मार दें"  लेखक जनता था की ये सांप तो है पर "आस्तीन" वाला न

भारतीय और संक्रमण

अभी  हाल ही में दुनिया का सामना एक बहुत ही खतरनाक वायरस संक्रमण से हुआ है ,"कोरोना" नाम है उसका।  नाम से लगता है कोई  बंगाली भद्रमानुष किसी को कुछ काम करने का आग्रह कर रहा हो "हे दादा तुमि किछु कोरोना" |  परन्तु आप सभी की जानकारी के अनुसार ये वायरस चाइनीज़ है।  पूरी दुनिया में उत्पात मचाते हुये ये भारत पहुंचा है।  बस यही गलती कर गया, भैया हमसे यूनानी हारे , मंगोल हारे और न जाने कितनो को तो मार के हाथ तक नहीं धोये।  परन्तु हमारी सदियों की मार कर हाथ न धोने वाली आदत को ही इस दुश्मन ने हथियार बनाया है।  ये जानता है की हम आन में विश्वास रखते है जोकि सदियों से चली आ रही है ,कि मार कर हाथ नहीं होना है परन्तु इस "नीच" की वजह से "जो हाथ नहीं धोते वो जान से हाथ धो बैठते हैं"।   इसने लगता है हम पर बहुत Research की है (कतई साइंटिफिक हुआ जा रहा है 😠) | हमारी एक और आदत रही है सदियों की ,"मूछों पर ताव देने की" पर इस वायरस ने उसे भी हथियार बना लिया और आँख नाक मुँह पर हाथ न फेरने की भद्दी शर्त रख दी | आप समझ रहे है हमारे कितना खिलाफ है यह वायरस | इध

History now-a-days

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बहुत समय बाद अपनी लेखनी उठाई है | या कहिए की उठवाई गयी है आजकल नया चला है भाईसाहब कोई कुछ पूछे तो ज्ञान देदो "क्यू उस दिन कहाँ थे जब शर्मा जी की बनियान बंदर उठा के ले गया था कितना रोए थे शर्मा जी अपने अंगवस्त्र के लिए पर तुमको उनके आँसू कहाँ दिखेंगे तुम सियूडो-सेकुलर जो ठहरे" | नही ये बताने के लिए नही आए है के उस दिन हम उठे ही १०:३० पर थे | अब बंदर को पीछे से गरियाने से शर्मा जी की बनियान वापस तो आ नही जाती | हम तो सोच रहे है सामने से जो बंदर कच्छा उड़ाने तैयार बैठा है उसका क्या किया जाए | आज एक नया लेख पढ़ा जिसमे लिखा था रुपया डॉलर से नीचे गिर गया है मतलब अमरिकी डॉलर महेंगा हो गया है | हमारे कई मित्र इस बात से बहुत परेशान है | सब के सब बुड्बक हो गये है अरे भाई उनका पैसा महेंगा हुआ तो वो जाने तुम लोग काहे चूड़ी फोड़ रहे हो | फिर किसी ने बताया के इसकी वजह से पेट्रोल महेंगा हो गया है हम तमतमा उठे | लगा उठा के सारे डॉलारो मे आग लगा दें | पर हमारे पास थे ही नही | ओर जेब के उस पुराने पाँच के नोट से हम रसगुल्ला खा सकते है जिससे हम डॉलर को भूल जाए | आर्थिक समाचार सिर्फ़ आर्थिक तौर

भारत बनना चाहता है

भारत बनना चाहता है एक नायक एक विचारक सुपरपावर महानायक भारत बनना चाहता है अमीरी का स्वर्ग , गरीबों का मारक जगत्गुरु, विश्वविजयी और महा संहारक भारत बनना चाहता है फ़ेसबुकिया सुपरस्टार , चाहिए बस लाइक 👌 चार विचारने को बुद्धि कम और  बतियाने को मुद्दे हज़ार भारत बनना चाहता है फेमस, ग्लैमरस, प्रेस्टीजियस, पायस हर सवाल उसको लगता दुस्साहस भारत बनना चाहता है फैन , प्रशंसक और पिछलग्गू सूरज निकलने पर जैसे कोई घुग्घू भारत बनना चाहता है संरक्षक, संस्कारी और कागज़ का वीर दबा देना चाहता वो बातें गंभीर भारत बनना चाहता है धार्मिक, पोंगा पंडित अनूठा वक़्त पड़े पे जो दिखा दे अंगूठा पर देखो आजतक का समय यही बताता है भारत जो चाहता है वही बन जाता है इस शोर में कोई मेरी बात सुनेगा क्या बस इतना बता दो मेरे भारत का बनेगा क्या... ??

हमारा हिंदी प्रेम

कल हिंदी दिवस था कल हमने देखा की हिंदी माँ को कई पुत्रों का स्नेह मिला कुछ तो गले से लटक गए ऐसे लटके की हिंदी माता को उनको कठिन शब्दों का मतलब पूछ के जमीन पे पटकना पडा। पर वाह रे हिंदी दिवस के हिंदी प्रेम वो लौंडे धरती पे गिरके रोये भी तो हिंदी में ही रोये। हम हिंदुस्तानी एक बेहतरीन प्रजाति हैं हमारे कुछ  क्रियाकलाप है जो की अपने आप में अलग ही हैं means ऊँचे दर्जे का swag है हममें। हम जानते हैं हम आलसी है इसीलिए ऐसे कई काम जिनको हमको रोज करना चाहिए उनके लिए एक खास दिन बना दिया है। जैसे एक मित्र जिनका सवेरा ही 11 बजे के बाद होता है वो भी योग दिवस पे चटाई लेके सवेरे 6 बजे सड़क पे पार्क की तरफ जाते दीखते है।  पूछने पे बताने में गर्व का अनुभव करके बताते है "यू नो फिज़िकल फिटनेस इस ए  मस्ट " पर इनको कौन बताये के भैया जी वीडियो गेम में भागने से तोंद के टायरों पे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। उसी तरह शिक्षक दिवस पर जिस मास्टर को हम दिन भर गरियाते रहे के टाइम पे स्कूल नहीं आता उसी की गरिमा में कविता पढ़नी होती है  "हमारा मास्टर कैसा हो , वर्मा जी के जैसा हो"।  परन्तु हिंदी दिवस में