सर्पागमन

डिस्क्लेमर :- निम्नलिखित  लेख सिर्फ विनोद के लिए है हमने बहुत ही अच्छे पडोसी पाए है इसको पढ़कर  कोई पूर्वाग्रह न बनाये 



हाल ही में लेखक के घर एक सांप का आगमन हुआ। किसी भी ठीक ठाक ब्रह्मांड में ये बात थोड़ी सी चिंता की थी जिसको थोड़ी सी सावधानी रखते हुए आसानी से दूर किया जा सकता था। जैसे खुद भागकर या किसी सांप पकड़ने वाले को बुलाकर या वन विभाग के कर्मचारियों से संपर्क करके इस समस्या को निपटाया जा   सकता था।  लेखक को भी यही लगा था अतः उसने कुछ अधिकारीयों से संपर्क किया और उधर से भी त्वरित कार्यवाही की बात कही गयी।  कुल मिलाकर सब सही  चल रहा था। परन्तु लेखक का समय बहुत अच्छा चल रहा था , इसीलिए देवयोग से किसी प्यारे पडोसी को पता लग गया कि लेखक के घर सांप निकला है फिर क्या था ये खबर जंगल की आग की तरह फ़ैल गयी कि " लेखक के घर सांप निकला है " इसी बात को ध्यान में रखते हुए आसपास के सारे "सांपनाथ और नागनाथ " निकल पड़े लेखक के घर की ओर।  जल्दी ही बड़े बड़े दावे सुनाई देने लगे जैसे "भाईसाहब कहें तो मार दें"  लेखक जनता था की ये सांप तो है पर "आस्तीन" वाला नहीं इसीलिए मरने योग्य नही है।  लेखक की विनय को ध्यान में रखते हुए मारने वाला आईडिया त्याग दिया गया। परन्तु ये तो पहला सुझाव था अभी तो कई "अस्त्र" बांकी थे।  कोई बोला देखो "देवी की लट " होगी ये सुनकर लेखक विस्मित हो गया क्या उसने भारतीय और ग्रीक माइथोलॉजी का कोई रिश्ता ढूंढ लिया है क्योकि अगर ये तथाकथित किसी देवी की लट हुयी तो मेडुसा भी पक्का आसपास ही होगी।  कुछ आलस्य की प्रतिमूर्ति भी आये थे सर्पदर्शन के लिए वे भी बोले " रहने दीजिये न क्या दिक्कत है चला जायेगा अपने आप  जब मन करेगा तो  "  कुछ ज्यादा उत्साही भी आये थे बोले " वन विभाग को आने में लगेगा टाइम हम तो है अभी देखते है सांप को " इतना कहकर उन लोगों ने पाटिया उठा ही तो लिया पर हुआ ये के इनकी जगह शायद सांप ने इनको "देख" लिया।  अब घिग्घी बंधे हुए आदमी वजन कैसे उठाये अतः लेखक का नल टूट गया।  पर सांप की दुविधा अलग थी शायद वो इन युवकों जितना उत्साही नहीं था या उसका खेलने का कोई मूड नहीं था इसीलिए वो जमीन की एक दरार में घुस गया।  पर भाईसाहब की सिट्टी पिट्टी गुम हो चुकी थी इसीलिए हीरो का किरदार  छोड़ के वो दर्शक दीर्घा में जाकर खड़े हो गए।  देवयोग से वन विभाग की टीम आ पहुंची उन्होंने आके मुआयना किया और गुस्से में लेखक से बोले " इसको अंदर क्यों घुसाया "। लेखक की तो हंसी ही छूट गयी जिसके कहने पर घुसे हुए मच्छर तक घर से बहार न निकले उसकी बात सांप ने मान ली।  आखिर थोड़ी मशक्कत के बाद सांप पकड़ कर  बोतल में बंद  कर दिया गया। कुछ पडोसी घर के आगे भीड़ देखकर अभी भी जल भून रहे थे शायद भगवन को कोस रहे हों कि " सब इनके ही साथ होता है ,सांप भी उनके ही घर निकला हमारे घर क्यों नहीं निकला , सब नाटक है इनके कि बस अखबार में फोटो आ जाये  "आखिरकार चाय के साथ सब ठीक ठाक संपन्न हुआ।  अब लगता है ये सर्पागमन हमको मोहल्ले में ख्याति दिलाने के लिए ही हुआ था। वर्ना कितने लोगों की बात इतनी जल्दी सुनी जाती है आखिरकार सब प्रेम से संपन्न हो गया। 

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