भारतीय और संक्रमण

अभी  हाल ही में दुनिया का सामना एक बहुत ही खतरनाक वायरस संक्रमण से हुआ है ,"कोरोना" नाम है उसका।  नाम से लगता है कोई  बंगाली भद्रमानुष किसी को कुछ काम करने का आग्रह कर रहा हो "हे दादा तुमि किछु कोरोना" |  परन्तु आप सभी की जानकारी के अनुसार ये वायरस चाइनीज़ है।  पूरी दुनिया में उत्पात मचाते हुये ये भारत पहुंचा है।  बस यही गलती कर गया, भैया हमसे यूनानी हारे , मंगोल हारे और न जाने कितनो को तो मार के हाथ तक नहीं धोये।  परन्तु हमारी सदियों की मार कर हाथ न धोने वाली आदत को ही इस दुश्मन ने हथियार बनाया है।  ये जानता है की हम आन में विश्वास रखते है जोकि सदियों से चली आ रही है ,कि मार कर हाथ नहीं होना है परन्तु इस "नीच" की वजह से "जो हाथ नहीं धोते वो जान से हाथ धो बैठते हैं"।   इसने लगता है हम पर बहुत Research की है (कतई साइंटिफिक हुआ जा रहा है 😠) | हमारी एक और आदत रही है सदियों की ,"मूछों पर ताव देने की" पर इस वायरस ने उसे भी हथियार बना लिया और आँख नाक मुँह पर हाथ न फेरने की भद्दी शर्त रख दी | आप समझ रहे है हमारे कितना खिलाफ है यह वायरस |

इधर हम लोग भी कुछ काम नहीं है , हम नैसर्गिक तौर पर संक्रमण सहयोगी है  | मुझे पता ही था ये बात आपके गले नहीं उतरेगी और आप नाक भौं सिकोड़ने लगेंगे।  परन्तु सरजी मेरे पास तर्क हैं। अगर पड़ोस के वर्मा जी की लड़की किसी लड़के के साथ दिख गयी तो पौने तीन सेकंड में हमारा संक्रमण नेटवर्क सक्रिय हो उठेगा और सिर्फ एक पहर के अंदर-अंदर वर्मा जी की लड़की के लगभग 35(3 /4 ) [ पैतीस सही तीन बटा चार ] लड़कों से चक्कर की सैंकड़ों कहानियां हवाओं में तैर रही होंगी।  अब आपको अपनी पसंद की संक्रमण की कहानी में उसका चक्कर अंधे,लंगड़े,लाल,काले,भद्दे  जिससे करवाना हो, हो जायेगा ऊपर से नमक मिर्च आपके स्वादानुसार (इस सब में उससे या उसके परिवार से पूछने की चेष्टा भी न करे, नहीं तो चैन टूट जाएगी संक्रमण की) | इस कोरोना संक्रमण को हिंदुस्तान आके खुद के बारे में ऐसी-ऐसी बातें पता लगी के बिचारा गिरते-गिरते बचा मसलन , दारु पीने से मर जाता है इसीलिए सरकारी खर्चे पे चौक-चौराहे पे दारु के प्याऊ लगवाए जाएँ। बहुत पानी पीने से मर जाता है पक्का, एक मित्र पी लिए अब उनका एक रिजर्व्ड शौचालय है | कुछ "खट्टे" लोगों का कहना है की नींबू से मर जाता है (वही पुरानी दुश्मन के दांत खट्टे करने की आदत) | कई सौ साल पुरानी  किताबें कबाड़ से निकाल-निकाल कर कोरोना का इलाज बता रहे है।  और सभी में एक  से एक अनोखी दवा।  इतनी साड़ी दवाओं से कोरोना मर सकता है ये जानकार बेचारा खुद डिप्रेशन में आ गया है, की इतने देशों में उत्पात मचाया हूँ पर एक दवा नहीं मिल सकी मेरी पर जैसे ही भारत आया हर मोबाइल के व्हाट्सप्प के एक-एक मैसेज में दो-दो दवाएं ,इधर से जल्दी निकलना पड़ेगा।  अब शायद आपको यकीं आने लगा होगा की हम लोग पक्के संक्रमण समर्थक हैं। पर हमको अपनी पुरानी परंपरा भूलनी नहीं है कि कैसे हमने आततायियों को धूल चटाई है। हम हाथ धोने की आदत चेंज कर लेंगे,और इसके पीछे हाथ धोके ऐसे पीछे पड़ेंगे की इसकी हालत भी बांकी चाइनीज़ सामान की तरह हो जाएगी। 

Comments

Popular posts from this blog

योग दिवस के उपलक्ष्य में

सर्पागमन

History now-a-days