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हमारा हिंदी प्रेम

कल हिंदी दिवस था कल हमने देखा की हिंदी माँ को कई पुत्रों का स्नेह मिला कुछ तो गले से लटक गए ऐसे लटके की हिंदी माता को उनको कठिन शब्दों का मतलब पूछ के जमीन पे पटकना पडा। पर वाह रे हिंदी दिवस के हिंदी प्रेम वो लौंडे धरती पे गिरके रोये भी तो हिंदी में ही रोये। हम हिंदुस्तानी एक बेहतरीन प्रजाति हैं हमारे कुछ  क्रियाकलाप है जो की अपने आप में अलग ही हैं means ऊँचे दर्जे का swag है हममें। हम जानते हैं हम आलसी है इसीलिए ऐसे कई काम जिनको हमको रोज करना चाहिए उनके लिए एक खास दिन बना दिया है। जैसे एक मित्र जिनका सवेरा ही 11 बजे के बाद होता है वो भी योग दिवस पे चटाई लेके सवेरे 6 बजे सड़क पे पार्क की तरफ जाते दीखते है।  पूछने पे बताने में गर्व का अनुभव करके बताते है "यू नो फिज़िकल फिटनेस इस ए  मस्ट " पर इनको कौन बताये के भैया जी वीडियो गेम में भागने से तोंद के टायरों पे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। उसी तरह शिक्षक दिवस पर जिस मास्टर को हम दिन भर गरियाते रहे के टाइम पे स्कूल नहीं आता उसी की गरिमा में कविता पढ़नी होती है  "हमारा मास्टर कैसा हो , वर्मा जी के जैसा हो"।  परन्तु हिंदी दिवस में