भविष्य का इतिहास

आजकल हम इतिहास के स्वर्णकाल में जी रहे हैं | यक़ीनन ये इतिहास का स्वर्णकाल है | आजकल भारत में हर जगह इतिहासकार पैदा हो गए हैं | ये इतिहासकार इतिहास को इतिहास की तरह नहीं देखते अपितु एक भारी गलती की तरह देखते हैं | और जिसको ये हमारे इतिहासवीर बदल के ठीक करने के अथक प्रयासों में लगे हुए हैं | वे इस कार्य में इतने निपुण है कि कभी कभी तथ्य न भी होने की  स्थिति में वे स्वयं के मन मुताबिक तथ्य  उत्पन्न कर लेते हैं | असल इतिहासकारों में ऐसी प्रतिभा नहीं देखी गयी थी | हमारे इन इतिहासवीरों ने स्वयं "इतिहास" को आत्मविष्लेषण करने पे विवश कर दिया है | आज के दौर में आप तथ्यों की बात न ही करें तो बेहतर है , अन्यथा आपके ऊपर कुतर्कों की ऐसी बारिश की जाएगी कि आपकी आत्मा तक सोचने लगेगी कि कहीं मेरे द्वारा दिए गए तथ्य व्यर्थ तो नहीं | आजकल देखा जा रहा है ज्यादार तथ्य देना व्यर्थ ही हो गया है | आजकल इतिहास को तथ्यों की नहीं बल्कि कपोल कल्पनाओं की ज्यादा आवश्यकता है | जिससे किसी व्यक्ति या दल विशेष का स्वार्थ पोषित हो सके | सही भी है ऐसे इतिहास का भी  क्या लाभ जिससे किसी बिचारे का धंधा भी न चल पाए | देख रहा हूँ पहले के समय में इतिहासकारों को बहुत रिसर्च वगैरह करनी पड़ती थी इतिहासकार बनना कठिन था परन्तु अब ऐसा नहीं है तकनीकि ने इतिहासकार बनना बहुत आसान बना दिया है | आप अपने मन में कोई भी घटना सोच लीजिये और उसके बारे में अपने हिसाब से कोई भी तथ्य बना लीजिये जैसे उदाहरण के लिए "शहीद भगत सिंह को 14 फरवरी को फांसी दी गयी थी " और चेप दीजिये इसको व्हाट्सप्प के किसी बड़े से जमघट (ग्रुप) पे | आप सोच भी नहीं पाएंगे आपने इतिहास को बदलने में कितना बड़ा योगदान दिया है | व्हाट्सप्प फॉरवर्ड ने कितने ही इतिहासवीरों को इतिहासकार होने के सुकून का अनुभव दिया है | अब सोचिये कब तक हम अपनी आने वाली नस्लों को ये सबका रटा हुआ घिसा पीटा इतिहास पढ़ाते रहेंगे | हमको चाहिए के इतिहास में "कुछ या सबकुछ" बदलकर एकदम नया इतिहास बना दें , जो तथ्यों के मामले में  कमजोर भले ही हो परन्तु वक़्त पड़ने पे हमारे अंदर बहुत अंदर बैठे हुए (अ)मानुष को बहार निकाल सके | जिसके आधार पे हम किसी व्यक्ति या समूह को घेर सकें , मार सकें | इस घेरने और मारने की प्रवर्ति को आवेश और  हिंसा समझने वालों को ये समझना चाहिए के ये हम अपने नए इतिहास के लिए ही कर रहे हैं | क्योंकि असल इतिहास में भी तो बहुत खून बहा है फिर हमारा इतिहास बिना खून पिए कैसे रह सकता है | हम भी इसका अभिषेक खून से करवाएंगे (दूसरों के) | इसमें ऐसे ऐसे काल्पनिक तथ्य डालेंगे की पढ़ने वाले की आँखों से चिंगारी और मुँह से झाग निकलने लगे | आज आप जिनके जीवन चरित्र को देखके अनुकरणीय मानते हुए सीखने की दुहाई देते हैं हमारे इतिहास को पढ़के आने वाले पीढ़ी उनको शायद गालियों से नवाजे | हमारे इतिहास के निर्माण में इतिहासवीरों के साथ साथ गालीवीरों का भी ख़ास योगदान होगा | जब भी कोई समझदार टाइप आदमी असल (Real) वाले इतिहास का तथ्य देने की कोशिश करेगा तो उसके ऊपर हमारे गालीवीरों को गले का पट्टा हटा के छोड़ दिया जायेगा और वो उसको गरियाते रहेंगे जिससे वो ऐसी गलती फिर न करे | इस तरह हमारे नवीन इतिहास के रक्षण की योजना भी बिल्कुल तैयार है | अब हमारे इतिहासवीरों को ज्यादा समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए | उनको दिन रात लग कर इस outdated हो चुके इतिहास को बदल देना चाहिए जिससे हमारी आने वाली जनरेशन को भी हमारे हुनर का लोहा मानना पड़े  | अरे भाई जो बीते हुए को बदल सके वो ईश्वर नहीं तो और क्या है | और हाँ आज के जमाने में जो करना है वो कीजिये परन्तु इन ऐतिहासिक इतिहासवीर ईश्वरों से बैर न लीजिये | काहे की भीड़ को उकसाने के लिए इनका एक व्हाट्सअप फॉरवर्ड ही आपके प्राण पखेरू ले उड़ेगा, इसीलिए सावधान रहें | मेरा एक अदना सा साष्टाँग दंडवत "भविष्य का इतिहास लिखने वाले वर्तंमान इतिहासवीरों के चरणों में" |

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