कहीं किसी रोज ....





आज सुबह में देवयोग से जल्दी उठ गया।  कोई कार्य न होने की वजह से पार्क की तरफ चल निकला।  पार्क वहीँ जहाँ गिरे पड़े लोग ऊंघते हुए ये देखने आते हैं कि उनके शरीर में कितनी जान है।  देखा वहां बहुत सारे लोग जा रहे थे उत्सुकतावश में भी पहुँच गया।  परन्तु वहां पहुँच के कोई दैवीय अनुभूति तो नहीं हुयी,वरन आश्चर्य जरूर हुआ।  देखा वहां कुछ और लोग भी आये थे न सिर्फ आये थे अपितु ऐसे क्रियाकलाप करने के विचार में भी थे जिससे उनकी कुछ सालों की जिंदगी कुछ मिनटों में खत्म हो सकती थी।  वो बुजुर्ग तो इतना थक गया था कि प्रशिक्षक के बार बार कहने के बावजूद उन्होंने पदमासन  में आने की बजाये शवाशन में ही रहना बेहतर समझा।
वही दूसरी और एक और भाईसाहब lift मांग रहे थे पास जाके के देखा तो वो तो योग ही कर रहे थे ! वहीँ दूसरी और कुछ नयी उम्र के अधेड़ योग वगैरह में अपना जीवन न नष्ट करते हुए बड़ी ही सार्थक बहस में मशगूल थे "ये राहुल है  कहाँ , आजकल TV पे दिख नहीं रहा "  "अरे थाईलैंड चला गया होगा "! मतलब अच्छा हुआ राहुल राहगीरी करते हुए सड़कों पे नहीं मिलता या इस पार्क में योग करने नहीं आता वरना विश्वास मानिये ये उसी  से पूछने लगते "यार ये थाईलैंड कैसा देश है और तुम बिना प्रार्थना पत्र दिए 15 दिन की छुट्टी पर कैसे चले गए पता है कितनी परेशानी हुयी हमको इन दिनों तुमपे कोई अच्छा joke  भी नहीं आया और तुमको पता है बिना तुम्हारे jokes के "our life sucks" ! सामने दो चार कवि ह्रदय लोग बैठे हुए थे और बारी बारी एक दूसरे के सब्र की परीक्षा ले रहे थे ये एक अच्छी प्रक्रिया है "मैंने तेरी सुनी अब तू मेरी सुन " और हरेक की कविता खत्म होने पर बांकी सब ताली बजाते हैं।  इसके दो फायदे है एक तो सामने वाले का confidence  बढ़ता है और दूसरा आसपास वालों का attention फ्री मिलता है।  अचानक नजर एक महानुभाव पे पड़ी वे अपनी नाक दबा दबा के जोर जोर से सांस लेने की कोशिश कर रहे थे।  पता नहीं ये लोग ईश्वर की परीक्षा लेना कब छोड़ेंगे अरे भाई नाक दबा लेगा और मुह बंद करके तू कितना भी कोशिश कर सांस नहीं आएगी।  बल्कि तेरी हरकतों से तुझे छोड़के ही चली जाएगी।  एक और साहब दो चार को पकड़ के अपनी नयी पालिसी समझा रहे हैं कहते हैं कि "बचत करने से कोई करोड़पति नहीं बनता इन्वेस्ट करो इन्वेस्ट। " इनको कौन समझाए अंकल साँसों में इन्वेस्ट करो पता नहीं कब आपका अकाउंट बंद हो जाये।  दो नयी उम्र के लड़के भी आ पहुंचे उनके ऊपर टिप्पणी कठिन है दरअसल आते ही उनके शब्द थे "यहाँ अच्छे पार्क तक नहीं हैं जबकि विदेशों में तो..... " इनके बारे में लिखना कठिन है क्योंकि मैंने  वहां के पार्क नहीं देखे है न।  इस पार्क में  लगी गांधी जी की प्रतिमा इन लोगों को रोज देखती होगी और सोचती होगी के आखिर आजादी आ ही गयी क्योंकि इस पार्क में "Dogs and Indians Both are allowed"
अब सूरज चढ़ आया है देख रहा हूँ लोग थक गए हैं ! कुछ शवासन में ही सो गए हैं ! अब उनको प्रशिक्षक जगा रहा है "योगा तुमसे नहीं होगा , अब घर जाओ।  " अंततः सबकी कविता भी किसी तरह समाप्त हो गयी और सहनशीलता भी सो सभी लोग तालियां बजा के अपने अपने घर की तरफ चल निकले।

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