कहीं किसी रोज ....
आज सुबह में देवयोग से जल्दी उठ गया। कोई कार्य न होने की वजह से पार्क की तरफ चल निकला। पार्क वहीँ जहाँ गिरे पड़े लोग ऊंघते हुए ये देखने आते हैं कि उनके शरीर में कितनी जान है। देखा वहां बहुत सारे लोग जा रहे थे उत्सुकतावश में भी पहुँच गया। परन्तु वहां पहुँच के कोई दैवीय अनुभूति तो नहीं हुयी,वरन आश्चर्य जरूर हुआ। देखा वहां कुछ और लोग भी आये थे न सिर्फ आये थे अपितु ऐसे क्रियाकलाप करने के विचार में भी थे जिससे उनकी कुछ सालों की जिंदगी कुछ मिनटों में खत्म हो सकती थी। वो बुजुर्ग तो इतना थक गया था कि प्रशिक्षक के बार बार कहने के बावजूद उन्होंने पदमासन में आने की बजाये शवाशन में ही रहना बेहतर समझा। वही दूसरी और एक और भाईसाहब lift मांग रहे थे पास जाके के देखा तो वो तो योग ही कर रहे थे ! वहीँ दूसरी और कुछ नयी उम्र के अधेड़ योग वगैरह में अपना जीवन न नष्ट करते हुए बड़ी ही सार्थक बहस में मशगूल थे "ये राहुल है कहाँ , आजकल TV पे दिख नहीं रहा " "अरे थाईलैंड चला गया होगा "! मतलब अच्छा हुआ राहुल राहगीरी करते हुए सड़कों पे नह...